Saturday 4 February 2017

Vihar Yatra - Vichar Yatra

विहार यात्रा  - विचार यात्रा





जाड़े की रुत शुरू हुई और साधू-साध्वीयो के विहार का प्रारंभ हुआ|
कार्तिक पूर्णिमा के बाद के दिन आये और ह्रदय के धबकारे बढ़ जाय|
कहीं कोई अकस्मात के समाचार मिल जाए! साधू भी अब निश्चिंत नहीं हे|
तनतोड़ महनत के बाद एक उत्तम साधू तैयार होता हे, और
चंद क्षणोमें उसे हंमेशा के लिए खो देना यह प्रभु के शासन के लिये हितकारी नहीं!
इसलिये साधू निश्चिंत नहीं हे|

अलबत, ख़ुशी की बात ये हे की अब साधू की चिंता करने वाले और सदैव
साधू-साध्वी की भक्ति में जीवन खर्च करने वाला श्री संघ साधू की सलामती हेतु
अत्यंत जागृत हे| उसमे भी सूर्योदय हो उससे पूर्व उपाश्रयो के बहार चहल-पहल
शुरू हो जाय| कभी जल्दी नहीं उठने वाले युवाओ "घट में घोड़े थनगने" उस प्रकार
तैयार हो कर खड़े रहते हे| सुंदर उनके दिदार एवं अदभुत उनका उत्साह होता हे!
रिफ्लेक्टर एवं रेडियम जेकेट पहनकर उल्लाससभर और विनयपूर्वक सेवा हेतु
आये हुये युवाओ को देख ह्रदय गद-गद हो जाये|

अकेले-अटूले विहार करते श्रमण-श्रमणी अब ज्यादा देखने को नहीं मिलते|
उनके साथ साथ एक्टिव और तेजस्वी श्रमणोपासको की फ़ौज तैयार ही होती हे|
विहारयात्रा में सहभागी बननेवाले युवाओ के लिये अत्यंत लगन उमड़ रही हे|
घर में अपनो के लिये पानी का गिलास तक नहीं भरने वाले युवाओ बारह-पन्द्राह
किलोमीटर तक गुरुदेवो के साथ साथ चले यह कुछ समय पूर्व सोचा तक नही जाता था|

साधू के साथ नये नये प्रसंग बने हे, एक युवान विहार यात्रा में जुडा|
गुरुमहाराज को रास्ता दिखाने वाले ने स्वयं रास्ता पा लिया|
नयसार के भव में हुआ था ऐसा ही भावसभर द्रश्य|
आज वो युवान दीक्षा की तैयारियो में व्यस्त हे|

एक गंभीर बाबत की और ध्यान  देता हूँ|
साधू को इतनी सहाय करने के बाद वह युवाओ संघ या ग्रुप के पास से क्या अपेक्षा रखते हे ?
बड़े पैमाने पर लगभग युवाओ विहार सेवा हेतु हुआ खर्च भी स्वयं उठाते हे अपने सामान
की तरहायाद रहे, विहार में आने वाले सभी युवा श्रीमंतो के सुपुत्र नहीं होते|
अपनी नोकरी व्यवसाय को त्याग कर, उसमे काप रख कर वे श्रमणो की सेवा करते रहते हे|
सुबह १५ किलोमीटर चलकर सामने गाँव में पहुंचने के बाद चाय-नास्ते की भी अपेक्षा रखे बिना,
बिलकुल भूखे-प्यासे ये हमारे युवाओ स्कुल-कालेज, जॉब या धंधे लग जाये ऐसा एक से अधिक बार
देखा हे! ऐसे नि:श्वार्थ  और साधूभक्त युवाओ की अनुमोदना प्रत्येक संघ में होनी चाहिये| जो नहीं होती!
बल्कि, संजोगोवसात विहार में पहुंचा जाय या व्यवस्था हो पाई हो तब उनकी टिका-निंदा का
आकर्षक एंठवाड उन पर टिकाया जा शकता हे| सच बात तो ये हे की हमे सच बात स्वीकारना नहीं आता|

यह ज्ञान के कोई इंजेक्शन नही आते| उसे पाने के लिये  निश्चलता और निष्पक्षपात की काम आये| सच कहु?
यह युवाओ को सबसे ज्यादा आशीष तो साध्वीजी भगवंतो के मिलते होंगे! महाराष्ट्र के एक विहार के दौरान साध्वीजी .सा. को अकस्मात  हुआ दो साध्वीजी .सा. और एक विहार सेवा करने वाला होनहार युवान गंभीर रूप से घायल हुआ| साध्वीजी भगवंत का मुर्ज़ाता ह्रदय  सतत कह रहा था : मुझे वो युवान की चिंता हो रही हे| हमारे लिए श्री संघ बहोत कुछ करेगा| पर बिलकुल सामान्य  घर का, परिवार का एकमात्र आधार यह  युवान का कौन करेगा?  वह अपंग प्राय: बन गये युवान के परिवार का भावी किसके हाथ में ?

साध्वीजी .सा. की पीडा उनके शरीर से ज्यादा उनके ह्रदय से निकलती थी, कहते थे : साधू-साध्वी की वैयाव्च्च में (और किसी को फाये तब भी) हर हंमेश तैयार यह युवान ने हमारे लिये जान की बाजी लगाई थी...अब जब वो मुश्किल में हे तब उसकी जिम्मेदारी कोन लेगा!

वे साध्वीजी भगवंत की वेदनासभर बात सुनकर आँख भर आई| यह युवाओ की श्रमणभक्ति को सलाम करने का मन होता हे| इन युवाओ के उत्साह के ओवारने  ले| सभी बाबत में शंका और नींदा के पडोशी बनकर सवाल उठाने वाले को एक ही बात कहनी हे :सवालदार बनने वाले जिम्मेदार कब बनेंगे?


ह्रदय परिवर्तन    (Hriday Parivartan)                     
अंक १२७ जनवरी २०१७ (Issue 127 JANUARY 2017)
कोलम साची वात  (Column : Sachi Vaat)
लेखन : श्रमणप्रज्ञ   (Writer : Shrmanpragya)






  

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