जैन मंदिरों में 31st दिसम्बर के नाम पर हो रहे महोत्सव(?) कितने योग्य?
आज कल जैन प्रजामें अपने गौरववंत इतिहास को भूल कर पाश्चात्य संस्कृतिका अँधा अनुकरण
देखने को मिल रहा हे! 31st दिसम्बर के नाम पर जैन मंदिरों में महोत्सव के नाम पर डी.जे. के गाने
बजाये जा रहे हे !! जहां हमे धर्म आराधना करनी हे वैसे उपाश्रयो में हमारी ही प्रजा पागलो की भाँती
जूते पहन कर खाना-पीना और बुफे भोज का उत्सव मनाती हे !!! कोई तो इसे रोके!
विशेष नोंध: यह लेख में किसी का भी मनदुःख करने का आशय नही या इर्ष्या-द्रेष या
आवेश की वजह से नही अपितु जैन संघोमें जागृति आये ऐसे ही एक मात्र आशयसे यह
लेख लिखा गया हे| इस हेतु इसी द्रष्टि से पढ़े|
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लेख स्त्रोत : ह्रदय परिवर्तन
अंक नं १२१ - जुलाई २०१६
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