महाराज साहेब के प्रवचनों
કલિકાલ સર્વજ્ઞ શ્રી હેમચંદ્રાચાર્યજી મહારાજા ની એક પ્રાચીન તસ્વીર |
देशमें दिखने वाले संस्कार और संस्कृति की दौर है। इस जगत में जितनी भी अच्छाई दिख रही है-
वे महात्माओं के उत्तमोत्तम जीवन और वचन से ही बनी हुई है ऐसा निसंदेह मानना!
प्रभु के वचनों पर इतनी श्रद्धा भी "सम्यगदर्शन" कहलाये।
ऐसे प्रवचन के बारे में कभी कभी अत्यंत सस्ती और हल्की टिका टिप्पणी होती हुई सुनाई दे
: 'फलाणे महाराज साहब का प्रवचन जोरदार, हिला दै ऐसा'....
-इतने तक ठीक फिर दूसरा शब्द सुनाई दे : '...और वो महाराज साहब का तो ठीक!*
कुछ महात्मा के प्रवचनो हेतु कुछ लोगो की स्पेशियल लॉबी ही होती है
जिनका एक ही काम। प्रवचन के लिए एक 'हाओ' खड़ा करना।
जबरदस्त,एक्सेलन्ट,अद्भुत,माइंड ब्लोइंग, सच्चा धर्म तो यहीं समझने को मिले!,
वैराग्य तो यहीं बहता दिखे, तू एक बार तो आ,और कहीं जाना ही नहीं चाहिए! -
विगेरे वाक्यो,शब्दो, शब्द समूह या उनकी बनाई हुई (या बनाई गयी)
रिधम के अनुसार निकला ही करे!!
वास्तव में सभी जगह अंत में तो 'जिनवाणी' ही बहती है
किंतु हम उसे 'ध्यान से या भाव से' सुनते नही होते।
दा.त. व्याख्यान,प्रवचन,जाहिर प्रवचन,शिबिर या वाचनाश्रेणी;
यह सभी शब्द अंत में तो 'प्रभु की वाणी' का पर्याय होते हुए भी सभी की
मानसिक असर भीन्न भिन्न होती है, ये हम जानते है!
एक बात मक्कमतापूर्वकयाद रखो:
सभी महात्माओं के प्रवचन अच्छे ही होते है और जो अच्छे हो उसे ही
प्रवचन या व्याख्यान कहा जा शके, बाकी कहलाये भाषण!
जिस व्याख्यान में पूरे गाँव की निंदा कुथली, व्यंग्य, दुसरो को निचा दिखाने की मैली शब्द रमत,
हमारे आलावा सभी गलत और कभी कबार तो में ही सच्चा,अच्छा और पढा हुआ आगमज्ञ।
बाकी सब ठोठ। ऐसे विधान होते हो वो प्रवचन सही प्रवचन नही। उसे भाषण की कक्षा में रखना हो
तो रखने की छूट!
क्या किसी को शराब या जुआं छुड़ाना वो धर्म नहीं?
क्या व्यसन छुड़ाये वह धर्म देशना नहीं?
क्या मार्गानुसारी के अत्यंत प्राथमिक कक्षा का उपदेश दे वो धर्म कथा नहीं?
कुछ लोग हज्जारो को व्यसनमुक्त एवं सज्जन बनाने वाले प्रभाव संपन्न पूज्यो के लिए
'आशाराम बापु' जैसी पदवी देकर शास्त्रों का हवाला दे तब 'अखा' याद आये।
'ओछु पातर ने अधिको भण्यो,
कजियाली बहु ऐ दिकरो जण्यो।
'सम्यग्दर्शन' पमाये उसे ही सच्चा प्रवचन गिनेंगे तो मार्गानुसारी के गुण प्रगटाये,
अनीति छुड़ाये, चोरी,जुआं,सात व्यसन छुड़ाये उसे कौनसा प्रवचन गिनेंगे?
वंकचुल को दी हुई अजीबोगरीब प्रतिज्ञाओं कौनसे प्रवचन में गिनायेगी?
मुंह के आगे कपड़ा रख ईर्ष्या की खुजली खुजाने वाले लोग मेंढकछाप
बादशाही भोगने के ख्वाब में ही ऐसा बोल शके! नही नही! हम ऐसे नहीं है।
इतना निर्णय करे:
एक, घर बैठे प्रवचन सुनना नहीँ, धर्मस्थान का पर्यावरण आपके जीवन पर खास असर कर शकता हे।
दो , साव सामान्य लगने वाले साधु पुरुष के दो शब्द भी अंत में महात्याग से परिपूर्ण होते है।
वे असरकारक बन शकते हे।
तीन, वृद्धमहापुरुषों के प्रवचन अचूक पर ध्यान से सुने।
जिवनभर की साधना का वहां अर्क झरता है।
चार , प्रवचन दौरान, मोबाईल,वॉट्सअप का उपयोग सदंतर बंद करे, जिससे एकाग्रता बनी रहे।
पांच, अच्छे/ख़राब की तुलना करने का अधिकार हमारा नहीं है ऐसा अनिवार्य रूप से मन में बिठा ले।
प्रवचन के बारे में बड़ा प्रवचन दे दिया...बहोत हुआ चलो अब व्याख्यान में चलते हे.....
कॉलम : साची वात
गुजराती से हिंदी अनुवादित
लेखन : श्रमण प्रज्ञ
ह्रदय परिवर्तन
अंक 124
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